आत्महत्या आत्ममंथन'
'आत्महत्या आत्ममंथन'
मेरा अंतर्मन और दिल असहनीय पीड़ा से भरा हुआ है । इतना बुद्धिजीवी भी नहीं हूं कि सब कुछ सहज ही समझ सकता और अगले को समझा देता । पिछले पांच सात दिनों में मेरे यहां के 3युवाओं ने अनचाही मौत को अपना शागिर्द बना दिया जिनकी हाल में हुई शादी। बहुत खुश थे वो परिवार । मैं बात कर रहा हूं गणेश नेण और नारायण गोयल और रायचंद भींचर की । जिन्होंने 5 दिन के अंदर अंदर अपने कुंठित मन और अवसाद को हल्का करने के लिए आत्महत्या को चुना । बहुत नजदीक से देखा उस मंजर को जिस घर में सफेद कफन में लिपटी हुई एक युवा बेटे की लाश आती है । वह बाप जिसने सुना की आपके सपनों को आवाज देने गया आपका बेटा गले में रस्सी डालकर पंखे से लटक कर जान दे चुका है । तो अपनी सुध बुध खो देता है और उसका व्यवहार पागलों जैसा हो जाता है तीन चार लोग उसको पकड़ कर बैठे है । आंगन के अंदर बेशुद, बेहोश उसकी मां जिसके हाथ में ड्रिप लगी हुई है । दहाड़े मार-मार कर रोते हुए उसके भाई बहन । और अरे मुझे छोड़ो मैं मरूंगी मैं अब क्यों जिउ मुझे मरने दो , हे मां मुझे मार दो , मेरा गला घोट दो , ऐसा कहकर कर रोती हुई उसकी पत्नी । सैकड़ों की संख्या में निशब्द खड़े लोग । क्या समझाएं और क्या दिलासा दे उनको किसी के कुछ समझ में नहीं आता । दर्द , गम और गुस्से से भरी हुई सबकी सजल आंखे । सबकी जुबाँ पर एक ही शब्द क्यों किया रे तूने ऐसा , एक बार तो ये नजारा अपने अंतर्मन से देख लेता कि तेरे इस कदम से तेरे परिवार के साथ क्या गुजरेगी । भगवान ऐसा नजारा किसी बेरी दुश्मनों को भी ना दिखाए । पर अब ये बात समझाएं किसको । मेरी उन युवाओं से अपील है जो अपनी छोटी मोटी परेशानियों की वजह से परेशान है । कि दुनिया के लिए तुम मात्र एक इंसान हो पर अपने परिवार के लिए आप पूरी दुनिया हो , इसलिए जीने के बहाने हजारों है उन में से किसी एक को चुन लो पर मरो मत ।
मेरा एक प्रश्न आप सभी बुद्धिजीवियो से है कि ऐसे वाकयो को कैसे रोका जाए । क्योंकि ऐसा लग रहा है की आत्महत्या अब युवाओं में एक प्रेरणा बन गई है ऐसे कुकृत्य से सबक लेने की बजाय सहज ही इस रास्ते को चुन रहे युवाओं को कैसे रोका जाए । इस बात पर गहन मंथन की आवश्यकता है
So sad miss you bhaiyo
मेरा अंतर्मन और दिल असहनीय पीड़ा से भरा हुआ है । इतना बुद्धिजीवी भी नहीं हूं कि सब कुछ सहज ही समझ सकता और अगले को समझा देता । पिछले पांच सात दिनों में मेरे यहां के 3युवाओं ने अनचाही मौत को अपना शागिर्द बना दिया जिनकी हाल में हुई शादी। बहुत खुश थे वो परिवार । मैं बात कर रहा हूं गणेश नेण और नारायण गोयल और रायचंद भींचर की । जिन्होंने 5 दिन के अंदर अंदर अपने कुंठित मन और अवसाद को हल्का करने के लिए आत्महत्या को चुना । बहुत नजदीक से देखा उस मंजर को जिस घर में सफेद कफन में लिपटी हुई एक युवा बेटे की लाश आती है । वह बाप जिसने सुना की आपके सपनों को आवाज देने गया आपका बेटा गले में रस्सी डालकर पंखे से लटक कर जान दे चुका है । तो अपनी सुध बुध खो देता है और उसका व्यवहार पागलों जैसा हो जाता है तीन चार लोग उसको पकड़ कर बैठे है । आंगन के अंदर बेशुद, बेहोश उसकी मां जिसके हाथ में ड्रिप लगी हुई है । दहाड़े मार-मार कर रोते हुए उसके भाई बहन । और अरे मुझे छोड़ो मैं मरूंगी मैं अब क्यों जिउ मुझे मरने दो , हे मां मुझे मार दो , मेरा गला घोट दो , ऐसा कहकर कर रोती हुई उसकी पत्नी । सैकड़ों की संख्या में निशब्द खड़े लोग । क्या समझाएं और क्या दिलासा दे उनको किसी के कुछ समझ में नहीं आता । दर्द , गम और गुस्से से भरी हुई सबकी सजल आंखे । सबकी जुबाँ पर एक ही शब्द क्यों किया रे तूने ऐसा , एक बार तो ये नजारा अपने अंतर्मन से देख लेता कि तेरे इस कदम से तेरे परिवार के साथ क्या गुजरेगी । भगवान ऐसा नजारा किसी बेरी दुश्मनों को भी ना दिखाए । पर अब ये बात समझाएं किसको । मेरी उन युवाओं से अपील है जो अपनी छोटी मोटी परेशानियों की वजह से परेशान है । कि दुनिया के लिए तुम मात्र एक इंसान हो पर अपने परिवार के लिए आप पूरी दुनिया हो , इसलिए जीने के बहाने हजारों है उन में से किसी एक को चुन लो पर मरो मत ।
मेरा एक प्रश्न आप सभी बुद्धिजीवियो से है कि ऐसे वाकयो को कैसे रोका जाए । क्योंकि ऐसा लग रहा है की आत्महत्या अब युवाओं में एक प्रेरणा बन गई है ऐसे कुकृत्य से सबक लेने की बजाय सहज ही इस रास्ते को चुन रहे युवाओं को कैसे रोका जाए । इस बात पर गहन मंथन की आवश्यकता है
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